• देवेन्द्र किशोर ढुंगाना

इस वक्त वर्ग शत्रुओं नें
अपने ठुँठे हात उठाकर,
विस्थापित हमारे मन को
अपनत्व के तराजू में रखकर,
सौदा बाजी मोलतोल कर रहे हैं
अब हम जनता की ढाल बनें,
और वर्ग शत्रुओं के कंधे पर
आग के फूलोंकी संग
आतिशबाजी खेलेंगे,
हमारी मजबूत बाहें
तुम्हारे पसीने की बदबू के साथ
जीन्दगी गुजारना मजबूर है,
भूख और युद्ध के आग उगलने के वजह
त्राहिमाम हुये लोग मुक्ति और न्याय के गानें गाते,
इस्पाती औजार बनकर उठो
उठो, उठो भूख के विरुद्ध में लडने,
मजबूत मुट्ठियाँ इन्कलाबी नारों के साथ
अपने खोये अधिकार छिनने,
प्रताड़ित लोगों मोर्चे में लडो
संसार बदलने वाले लाल जनता
आज व्यग्र और उत्तेजित है,
अब पंक्तिबद्ध होकर
परिवर्तन की आगमन में जुटेंगे,
देखो१ सूर्य भी लालिमा लिए उग रहा है
जीवन की चेतनायें भी लाल है,
हमारे धरातल की मिट्टी भी
पसीने की मिठी गानें गाती हैं,
मृत हमारी उत्साह ही नहीं
लाल लाल लोगों के भिड ने
उन्मुक्ति का उद्घोष करते हैं,
जीत हमारी अटल है।
सभी के लाल जीन्दगी को
संग्रामी सलाम !! ??

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