राजवंशी भाषिक कविता : “सोक्ठाँका”

चाँनेर सिरे .. चाँन्दनी
चँक्चँकालो गे .. बाँन्दरनी।
तोर कामाई छेकुन गे .. के टाँका?
आल्हाए कहचित .. मोक सोक्ठाँका ??

जैदिना कहनु तोक .. स्वर्गेर परी
अैदिनासे दिलो मोक .. बुकत भँरी।
सेर्ताए खालो त .. मोर टाँका
आल्हाए कहचित .. मोक सोक्ठाँका ??

ऐल्ता पाएडर .. लिलो नानाथरी
ठेङ्गत दिनु फेर .. पाएजँप भरी।
हाट बाजार लिए बेरानु .. बेजँखा
आल्हाए कहचित .. मोक सोक्ठाँका??

रस रस खिलानु .. जुल्पी खाँस्ता
मन भराए मिलानु .. म:म,चाउमिन नास्ता।
जै माँगिस्लो सेइलाते .. दिस्नु ठँका।
आल्हाए कहचित .. मोक सोक्ठाँका ??

भेल्सी छिलोते करिस्नु .. मायाते जँखा
मायाते नि कहु तोक .. खेर्ता-नापा ।
तोक सुझाए बुझाए .. दिस्नु त झाँका
आल्हाए कहचित .. मोक सोक्ठाँका ??

कचनकवल :- ३, दल्की झापा
हाल :- मलेसिया
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