राजवंशी भाषिक कविता : “गरिबेर बेभाँर”

पाँन्जी पात्रसे . चलेना जे घरबार
कुन्हा मिले .. दर्शनते ज्ञान ?
आशेर भर्साते .. चलेचे गरीब जीवन
निजे डेग्राचु .. बिधीर बिधान ।।

सैइर करु जे .. सारा ब्रम्हाण्ड्
ग्रह बिग्रहलाअ त् .. निछे एकसामान।
नव-ग्रहर दर्शन .. निछे गरीबेर हाते
बनु केङकरे .. हिते बलबान ??

लुहा बोले धातु .. पित्तल होल बास्तु
सँना-चाँनी होल .. धनेर धनबान।
कुन्धर बसे लखी .. कुन्धर बसे सरस्वती
गृहबासेर करु केङ्करे .. घर निर्माण ??

मेघेर उँल्का .. अग्नी-पानीर झिल्का
मोर गृह दोषते .. लागे रे बाँण ।
देखिए रहचु चाँन्ड् .. मेघ-ताँरुर झुण्ड्
हचे दैत्यराज ताँह् .. केङ्करे बिराजमान ??

सहलाते सहलाते जाछे .. जायजेथा जीवन
एइटी देहा हचे .. माटीर सामान ।
जथानामी बेभार .. मुजेना रे केभाँर?
मुई जानुना रे .. बिधीर बेदबिधान।।

जोगेन्द्र प्रसाद राजवंशी
कचनकवल:-३, दल्की, झापा
हाल:- मलेसिया

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