राजवंशी भाषिक कविता : “मराल संस्कृति”

हाय रे हाय .. मोर जल्मदिन
केनङ् .. जुगेर चलनचल्ती।
गेछा घेमाए .. आशिस लिबार
आसिल .. मराल संस्कृति ।।

घरते छे .. तेल आर चेराक
ना जले .. गेछा अगरबत्ती।
भोगबिलासते .. भोग खाँबार
आसिल .. मराल संस्कृति ।।

किसेर थितु .. किसेर गाजुँ ,
के देखे ?.. केमिकलेर बिति।
खँस्खँस् मैदा ..देखुवार काईदा
देख जिभाते .. रसाए बेतिथी।।

जलम तिथिते .. हबा लागे,
जीवनेर कोई .. लक्ष्य उन्नति ।
दुहाई देछे .. ईष्टकुटुम्बला मोक
केनङकरे .. हबे मोर प्रगती।।

अग्नी ब्रम्हा .. भोगते बिष्णु
पुगे ना .. रितेर थिति।
काँहाक सँपिया .. मनामु जल्मदिन
हाय रे हाय .. मराल संस्कृति ।।

कचनकवल :- ३, दल्की झापा
हाल :- मलेसिया
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